मीराबाई का सुप्रसिद्ध भजन और कविता | Meerabai Bhajan

“पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।”

यह मीराबाई का सुप्रसिद्ध भजन हम सब ने सुना हैं। मीरा बाई एक बहुत ही प्रसिद्ध और जानी मानी कवियत्री होने के साथ साथ कुष्ण की बहुत बड़ी भक्त थी। जब भी भगवान् श्री कृष्ण की भक्ति की बात आती हैं तो सबसे पहले जुबान पर मीरा बाई का नाम आता हैं जिन्होंने श्री कृष्ण की भक्ति के लिए अपना पूरा जीवन त्याग दिया। Meera Bhajan – मीराबाई के हर भजन और कविता में श्री कृष्ण की भक्ति छलकती हैं। उनके भजन सुनने में सबको अच्छे लगते हैं। तो चलिए आज हम भी मीरा बाई के लिखे भजन और कविताओं को पढ़कर भगवान् श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन हो जाएंगे।

Meera Bhajan

मीराबाई का सुप्रसिद्ध भजन और कविता – Meera Bhajan

Meera Bhajan

“पायो जी मैंने”

पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरू, किरपा कर अपनायो॥
जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो।
खरच न खूटै चोर न लूटै, दिन-दिन बढ़त सवायो॥
सत की नाँव खेवटिया सतगुरू, भवसागर तर आयो।
‘मीरा’ के प्रभु गिरिधर नागर, हरख-हरख जस पायो॥

~ मीराबाई

Meera Poem

“सुण लीजो बिनती मोरी”

सुण लीजो बिनती मोरी,
मैं शरण गही प्रभु तेरी।
तुम (तो) पतित अनेक उधारे,
भव सागरसे तारे॥
मैं सबका तो नाम न जानूँ,
कोइ कोई नाम उचारे।
अम्बरीष सुदामा नामा,
तुम पहुँचाये निज धामा॥
ध्रुव जो पाँच वर्ष के बालक,
तुम दरस दिये घनस्यामा।
धना भक्त का खेत जमाया,
भक्त कबिरा का बैल चराया॥
सबरी का जूंठा फल खाया,
तुम काज किये मन भाया।
सदना औ सेना नाईको,
तुम कीन्हा अपनाई॥
करमा की खिचड़ी खाई,
तुम गणि का पार लगाई।
मीरा प्रभु तुमरे रँग राती,
या जानत सब दुनियाई॥

~ मीराबाई

Poem of Meerabai

“कृष्ण मंदिरमों मिराबाई नाचे”

कृष्ण मंदिर में मिराबाई नाचे तो ताल मृदंग रंग चटकी।
पाव में घुंगरू झुमझुम वाजे। तो ताल राखो घुंगटकी॥१॥
नाथ तुम जान है सब घटका मीरा भक्ति करे पर घटकी॥टेक॥
ध्यान धरे मीरा फेर सरनकुं सेवा करे झटपटको।
सालीग्रामकूं तीलक बनायो भाल तिलक बीज टब की॥२॥
बीख कटोरा राजाजी ने भेजो तो संटसंग मीरा हट की।
ले चरणामृत पी गईं मीरा जैसी शीशी अमृत की॥३॥
घरमेंसे एक दारा चली शीरपर घागर और मटकी।
जागो म्हांरा जगपतिरायक हंस बोलो क्यूं नहीं।।
हरि छो जी हिरदा माहिं पट खोलो क्यूं नहीं।।
तन मन सुरति संजो सीस चरणां धरूं।
जहां जहां देखूं म्हारो राम तहां सेवा करूं।।
सदकै करूं जी सरीर जुगै जुग वारणैं।
छोडी छोडी लिखूं सिलाम बहोत करि जानज्यौ।
बंदी हूं खानाजाद महरि करि मानज्यौ।।
हां हो म्हारा नाथ सुनाथ बिलम नहिं कीजिये।
मीरा चरणां की दासि दरस फिर दीजिये।।३।।

~ मीराबाई

Meerabai Poem

“मीरा के होली पद”

फागुन के दिन चार होली खेल मना रे॥
बिन करताल पखावज बाजै अणहदकी झणकार रे।
बिन सुर राग छतीसूं गावै रोम रोम रणकार रे॥
सील संतोखकी केसर घोली प्रेम प्रीत पिचकार रे।
उड़त गुलाल लाल भयो अंबर, बरसत रंग अपार रे॥
घटके सब पट खोल दिये हैं लोकलाज सब डार रे।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर चरणकंवल बलिहार रे॥

~ मीराबाई

Poem of Meerabai

“हरि तुम हरो जन की भीर”

हरि तुम हरो जन की भीर।
द्रोपदी की लाज राखी,
तुरत बढ़ायो चीर॥
भगत कारण रूप नर हरि,
धरयो आप सरीर॥
हिरण्याकुस को मारि लीन्हो,
धरयो नाहिन धीर॥
बूड़तो गजराज राख्यो,
कियौ बाहर नीर॥
दासी मीरा लाल गिरधर,
चरण-कंवल पर सीर॥

~ मीराबाई

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Comments

Naruto said…
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Rajesh Deepak said…
This comment has been removed by the author.

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