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कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता कहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं...

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कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता कहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता तमाम शहर में ऐसा नहीं ख़ुलूस न हो जहाँ उमीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता कहाँ चराग़ जलाएँ कहाँ गुलाब रखें छतें तो मिलती हैं लेकिन मकाँ नहीं मिलता ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैं ज़बाँ मिली है मगर हम-ज़बाँ नहीं मिलता चराग़ जलते हैं बीनाई बुझने लगती है ख़ुद अपने घर में ही घर का निशाँ नहीं मिलता - ✍️पद्मश्री निदा फाजली़ #NidaFazli #hindipoetry #Rektha #WP #HindiSahitya https://www.instagram.com/p/Bo1Q6WChAdz/?utm_source=ig_tumblr_share&igshid=mauy6p24uqls http://bit.ly/2yuz5n6