VALMIKI JAYANTI

अश्विन मास की शरद पूर्णिमा को महर्षि वाल्मीकि का जन्मदिवस (वाल्मीकि जयंती) मनाया जाता है। इस साल वाल्मीकि जयंती अंग्रेजी महीनों के हिसाब से पांच अक्टूबर को होगी। वैदिक काल के प्रसिद्ध महर्षि वाल्मीकि ‘रामायण’ महाकाव्य के रचयिता के रूप में विश्व विख्यात है। महर्षि वाल्मीकि को न केवल संस्कृत बल्कि समस्त भाषाओं के महानतम कवियों में शुमार किया जाता है। महर्षि वाल्मीकि के जन्म के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं है। एक पौराणिक मान्यता के अनुसार उनका जन्म महर्षि कश्यप और अदिति के नौवें पुत्र वरुण और उनकी पत्नी चर्षणी के घर में हुआ। माना जाता है कि महर्षि भृगु वाल्मीकि के भाई थे। महर्षि वाल्मीकि का नाम उनके कड़े तप के कारण पड़ा था। एक समय ध्यान में मग्न वाल्मीकि के शरीर के चारों ओर दीमकों ने अपना घर बना लिया। जब वाल्मीकि जी की साधना पूरी हुई तो वो दीमकों के घर से बाहर निकले। दीमकों के घर को वाल्मीकि कहा जाता हैं इसलिए ही महर्षि भी वाल्मीकि के नाम से प्रसिद्ध हुए।
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पूरे भारतवर्ष में वाल्मीकि जयंती श्रद्धा-भक्ति एवं हर्षोल्लास से मनाई जाती हैं। वाल्मीकि मंदिरों में श्रद्धालु आकर उनकी पूजा करते हैं। इस शुभावसर पर उनकी शोभा यात्रा भी निकली जाती हैं जिनमें झांकियों के साथ भक्तगण उनकी भक्ति में नाचते, गाते और झूमते हुए आगे बढ़ते हैं। इस अवसर पर ना केवल महर्षि वाल्मीकि बल्कि श्रीराम के भी भजन भी गाए जाते हैं। महर्षि वाल्मीकि ने रामायण महाकाव्य के सहारे प्रेम, तप, त्याग इत्यादि दर्शाते हुए हर मनुष्य को सदभावना के पथ पर चलने के लिए प्रेरित किया। इसलिए उनका ये दिन एक पर्व के रुप में मनाया जाता है।Image result for valmiki jayantiImage result for valmiki jayanti


एक पौराणिक कथा के अनुसार वाल्मीकि महर्षि बनने से पूर्व उनका नाम रत्नाकर था। रत्नाकर अपने परिवार के पालन के लिए लूटपाट किया करते थे। एक समय उनकी मुलाकात नारद मुनि से हुई। रत्नाकर ने उन्हें भी लूटने का प्रयास किया तो नारद मुनि ने उनसे पूछा कि आप ये काम क्यों करते हैं। रत्नाकर ने उत्तर दिया कि परिवार के पालन-पोषण के लिए वह ऐसा करते हैं। नारद मुनि ने रत्नाकर से कहा कि वो जो जिस परिवार के लिए अपराध कर रहे है और क्या वो उनके पापों का फल भोगने मे उनकी साझीदार होगा? असमंजस में पड़े रत्नाकर नारद मुनि को एक पेड़ से बांधकर अपने घर उस प्रश्न का उत्तर जानने हेतु पहुंचे। उन्हें जानकर बहुत ही निराशा हुई कि उनके परिवार का एक भी सदस्य उनके इस पाप का फल भोगने में साझीदार बनने को तैयार नहीं था। वाल्मीकि वापस लौटकर नारद के चरणों में गिर पड़े और उनसे ज्ञान देने के लिए कहा। नारद मुनि ने उन्हें राम नाम जपने की सलाह दी। यही रत्नाकर आगे चलकर महर्षि वाल्मीकि के रूप में विख्यात हुए।


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